Guru Parichay
उदयपुर जिले में बाठेड़ा नामक एक छोटा-सा गाँव है। इस गाँव में रेवाचन्द्र जी जैन रहा करते थे। वे पण्डितपद पर प्रतिष्ठित थे। उनकी धर्मपत्नी का नाम सोहनीदेवी था। इस सर्वगुणसम्पन्न दम्पति के दो पुत्र और तीन पुत्रियाँ थी। उनमें से एक पुत्र का नाम था-कन्हैयालाल। बालक कन्हैयालाल ने विक्रम संवत् २००३ में ज्येष्ठ शुक्ला त्रयोदशी के दिन जन्म लिया था। ईसवी सन् के अनुसार वह १-६-१९४७ का दिन था। कन्हैयालाल ने अपना सम्पूर्ण लौकिक शिक्षण अपने पिताश्री के समीप ही किया। उन्हें धार्मिकसंस्कार तो जन्मघुट्टी में ही प्राप्त हुये थे। एक बार कन्हैयालाल दिगम्बर जैन सिद्धक्षेत्र पावागढ़ की वन्दना करने के लिये गया। वहाँ चिन्तामणि पार्श्वनाथ भगवान की वन्दना करने से उसके परिणामों में अत्यन्त विशुद्धि आयी। फलतः उसने वहीं जिनेन्द्र भगवान को साक्षी बना कर परम दुर्द्धर ब्रह्मचर्यव्रत ग्रहण किया। कन्हैयालाल की मुनियों के प्रति अपार भक्ति थी। उसने मुनिराज को आहार प्रदान करने के लिये ही परम पूज्य आचार्यश्री सीमन्धरसागर जी महाराज और आचार्यश्री सुबाहुसागर जी महाराज के श्रीचरणों में आजीवन के लिये शूद्रजल का त्याग किया। बालक कन्हैयालाल के धार्मिकसंस्कार उसके विरक्तिभाव को वर्द्धित कर रहे थे। वह प्रतिदिन सकलसंयम को अंगीकार करने की भावना करता था। उसके सत्पुरुषार्थ को गुरुजनों के आशीर्वाद का सहयोग भी प्राप्त हुआ। फलतः दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र-हुमचा पद्मावती (कर्नाटक) में परम पूज्य चारित्र-चक्रवर्ती, आचार्यश्री आदिसागर जी महाराज (अंकलीकर) के पट्टाधीश, परम पूज्य तीर्थभक्त-शिरोमणि, आचार्यश्री महावीरकीर्ति जी महाराजके कर कमलों से विक्रम संवत् २०२४ को आषाढ़ शुक्ला द्वितीया के दिन रविवार को कन्हैयालाल जी की मुनिदीक्षा सम्पन्न हुयी। ईसवी सन् के अनुसार वह दीक्षा ९-७-१९६७ को सम्पन्न हुयी। बालक कन्हैया अब सकलसंगविरक्त मुनि कुन्थुसागर जी महाराज के नाम से जाना जाने लगा। आपकी पात्रता को विलोक कर गुरुदेव ने आपको ३-१-१९७२में गणधरपद पर आसीन किया। कई सदियों में आप पहले गणधर बने। गुरुदेव के समाधिमरण के उपरान्त आपने विभिन्न स्थानों पर स्वत न्य विहार कर जिनशासन की महति प्रभावना की। आपके द्वारा की जाने वाली प्रभावना को तथा आपकी संघसंचालन-व्यवस्था को देख कर आपके वरिष्ट गुरुभ्राता, परम पूज्य निमित्तज्ञान-शिरोमणि, वात्सल्य रत्नाकर, आचार्यश्री विमलसागर जी महाराज ने आपको आचार्यपद प्रदान किया। उनकी आज्ञा को शिरोधार्य कर यह पदारोहण समारोह दिनांक १९-११-१९८० को अकलूज नगरी में सम्पन्न हुआ। आपने श्रमणसंघ को नया आयाम दिया। आपके द्वारा अब तक दो सौ से अधिक दीक्षायें सम्पन्न हो चुकी है। आपके द्वारा सतरह मुनियों को आचार्यपद, दो मुनियों को एलाचार्यपद, एक मुनिराज को उपाध्याय पद और -- आर्यिका माताओं को गणिनीपद समर्पित किया गया है। आप लेखनी के जादुगर भी हैं। आपने लघु विद्यानुवाद, प्रतिष्ठा विधिदर्पण, देवौषधि रत्नाकर, भैरव पद्मावती कल्प, श्री गोम्मट प्रश्नोत्तर चिन्तामणि, व्रतकथाकोश आदि अनेक कृतियों की संरचना की है। विविध विषयों में लिपिबद्ध ये रचनायें समाज में सिद्धान्त और आचरण का बीजारोपण करने का सत्प्रयत्न कर रही है। जिनागम सिद्धान्त महोदधि, भारत-गौरव, स्याद्वाद-केशरी, वात्सल्य-रत्नाकर, गणाधिपति आदि अनेक उपाधियों से विभूषित गणधराचार्यश्री जी सम्पूर्ण आधि-व्याधि-उपाधियों से रहित थे। आचार्यश्री का सरल स्वभाव उनके चुम्बकीय व्यक्तित्व का प्राण है। उनकी चर्या में सहजता है। इतने बड़े विशाल संघ के अधिनायक होते हुये भी उनके मन को अहंकार का भयंकर विषधर स्पर्श तक नहीं कर सका। आपके सानिध्य में तीर्थक्षेत्र अणिन्दा (उदयपुर) का जीर्णोद्धार हुआ। मात्र दश वर्षों की लघु अवधि में आपके प्रसाद से कुन्थुगिरि का जो विकास हुआ है, वह आश्चर्यजनक है। आचार्यश्री की साधना दिनों दिन वद्धिगत होती रहे, उनका स्वास्थ्यरूपी ऐश्वर्य प्रवर्द्धित होता रहे और उनका आशीर्वाद अनेक वर्षों तक इस धरातल को पवित्र बनाता रहे-यही सद्भावना।
Parasnath Jinalaya
पार्श्वप्रभु के गुण अगम, महिमा अपरम्पार। नमन करो उनको सभी, पाओ सौख्य अपार।। श्री त्रिभुवन चूड़ामणि, चिन्तामणि, कलिकुण्ड पार्श्वनाथ जिनालय में मूल-नायक मूर्ति के रूप में श्री पार्श्वनाथ भगवान की प्रतिमा विराजमान है। एक सौ आठ फणों वाले इस विशालकाय मूर्ति का निर्माण श्यामवर्णीय पाषाण से हुआ है। प्रत्येक फण में
Read More
Kunthugiri Parichay
कुन्थुगिरि तीर्थक्षेत्र – इतिहास और जानकारी “बहता पानी और रमता जोगी—यही जीवन की सच्ची नीति है।” सन् 1967 में परम पूज्य आचार्यश्री महावीरकीर्ति जी महाराज से मुनिदीक्षा प्राप्त करने के पश्चात् गणधराचार्य कुन्थुसागर जी महाराज ने सम्पूर्ण भारत में विहार किया। वर्षों की साधनायात्रा के अनुभव से यह अनुभूति हुई कि वयोवृद्ध
Read More
Guru Parichay
उदयपुर जिले में बाठेड़ा नामक एक छोटा-सा गाँव है। इस गाँव में रेवाचन्द्र जी जैन रहा करते थे। वे पण्डितपद पर प्रतिष्ठित थे। उनकी धर्मपत्नी का नाम सोहनीदेवी था। इस सर्वगुणसम्पन्न दम्पति के दो पुत्र और तीन पुत्रियाँ थी। उनमें से एक पुत्र का नाम था-कन्हैयालाल। बालक कन्हैयालाल ने विक्रम
Read More