logo
logo

Parasnath Jinalaya

पार्श्वप्रभु के गुण अगम, महिमा अपरम्पार। नमन करो उनको सभी, पाओ सौख्य अपार।। श्री त्रिभुवन चूड़ामणि, चिन्तामणि, कलिकुण्ड पार्श्वनाथ जिनालय में मूल-नायक मूर्ति के रूप में श्री पार्श्वनाथ भगवान की प्रतिमा विराजमान है। एक सौ आठ फणों वाले इस विशालकाय मूर्ति का निर्माण श्यामवर्णीय पाषाण से हुआ है। प्रत्येक फण में दो-दो रत्न भी जड़े हुये हैं। मूर्ति के नीचे कलिकुण्डयन्त्र बना हुआ है। यन्त्र पर नागासन है और उस पर जिनप्रतिमा है। यह प्रतिमा नौ फीट उन्नत है। संघ प्रतिदिन इसी प्रतिमा का पंचामृत-अभिषेक देखता है। मूलनायक प्रतिमा के आगे चिन्तामणि पार्श्वनाथ भगवान की प्रतिमा विराजमान है। श्वेतपाषाण से निर्मित यह प्रतिमा एक कमल पर विराजमान है। यह प्रतिमा ढाई फीट उन्नत है। प्रतिमा के सामने एक लघुकाय वेदी है। उस पर पार्श्वनाथ भगवान के यक्ष धरणेन्द्र और यक्षी पद्मावती की धातुमयी प्रतिमा स्थापित की हुयी है। इन दोनों की ऊँचाई ग्यारह फीट की है। अन्य अनेक धातुमयी प्रतिमा इस वेदी पर तथा भगवान पार्श्वनाथ के आसपास विराजमान की हुयी है। इस जिनालय की ख्याति और चमत्कार की किंवदन्तियाँ अतिशय प्रचलित हैं। स्तुति भवज्वलनसन्तप्तसत्वशान्तिसुधाकरम् । भव्यकल्पतरुं नौमि, पार्श्वनाथं गुणालयम् ।। अर्थात् : भवज्वलनसन्तप्तसत्वशान्तिसुधाकरम् संसार की अग्नि में सन्तप्त जीवों के लिये जो शान्ति का अमृतसागर हैं, जो गुणालयम् गुणों के आवासस्थल हैं, उन भवयकल्पतरुम् भव्य जीवों के लिये कल्पवृक्ष के समान पार्श्वनाथम् भगवा पार्श्वनाथ को मैं नौमि नमन करता हूँ।
Parasnath Jinalaya

पार्श्वप्रभु के गुण अगम, महिमा अपरम्पार। नमन करो उनको सभी, पाओ सौख्य अपार।। श्री त्रिभुवन चूड़ामणि, चिन्तामणि, कलिकुण्ड पार्श्वनाथ जिनालय में मूल-नायक मूर्ति के रूप में श्री पार्श्वनाथ भगवान की प्रतिमा विराजमान है। एक सौ आठ फणों वाले इस विशालकाय मूर्ति का निर्माण श्यामवर्णीय पाषाण से हुआ है। प्रत्येक फण में

Read More
Kunthugiri Parichay

कुन्थुगिरि तीर्थक्षेत्र – इतिहास और जानकारी “बहता पानी और रमता जोगी—यही जीवन की सच्ची नीति है।” सन् 1967 में परम पूज्य आचार्यश्री महावीरकीर्ति जी महाराज से मुनिदीक्षा प्राप्त करने के पश्चात् गणधराचार्य कुन्थुसागर जी महाराज ने सम्पूर्ण भारत में विहार किया। वर्षों की साधनायात्रा के अनुभव से यह अनुभूति हुई कि वयोवृद्ध

Read More
Guru Parichay

उदयपुर जिले में बाठेड़ा नामक एक छोटा-सा गाँव है। इस गाँव में रेवाचन्द्र जी जैन रहा करते थे। वे पण्डितपद पर प्रतिष्ठित थे। उनकी धर्मपत्नी का नाम सोहनीदेवी था। इस सर्वगुणसम्पन्न दम्पति के दो पुत्र और तीन पुत्रियाँ थी। उनमें से एक पुत्र का नाम था-कन्हैयालाल। बालक कन्हैयालाल ने विक्रम

Read More