समाधिमन्दिर
साधुओं के निवासस्थल को वसतिका कहते हैं। साधना की सिद्धि में वसतिका का भी महत्व आचार्यों ने स्वीकार किया है।
जो सल्लेखना को ग्रहण करता है, उसे क्षपक कहते हैं।
इस विषय में नियम यह है कि यदि दो वसतिकाओं का ग्रहण किया जाता है तो एक में क्षपक रहता है और दूसरी में यतिवर्ग रहता है। यदि तीन वसतिकाओं का ग्रहण किया जाता है तो एक में क्षपक, दूसरी में अन्य यति और तीसरी में धर्मोपदेश की क्रिया होती है।
आगम के इसी नियम को ध्यान में रख कर इस क्षेत्र पर समाधिमन्दिर का निर्माण किया गया है। जब क्षपक यमसल्लेखना को ग्रहण करते हैं, तब उनका निवास उस मन्दिर में कराया जाता है।
समाधिमन्दिर में दो कमरे और एक भवन है।
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श्री त्रिभुवन चूड़ामणि, चिन्तामणि, कलिकुण्ड पार्श्वनाथ जिनालय में मूल- नायक मूर्ति के दाये हाथ पर धरणेन्द्र की वेदिका है। इसके...
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साधुओं के निवासस्थल को वसतिका कहते हैं। साधना की सिद्धि में वसतिका का भी महत्व आचार्यों ने स्वीकार किया है।जो...
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