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समाधिमन्दिर


साधुओं के निवासस्थल को वसतिका कहते हैं। साधना की सिद्धि में वसतिका का भी महत्व आचार्यों ने स्वीकार किया है।

जो सल्लेखना को ग्रहण करता है, उसे क्षपक कहते हैं।

इस विषय में नियम यह है कि यदि दो वसतिकाओं का ग्रहण किया जाता है तो एक में क्षपक रहता है और दूसरी में यतिवर्ग रहता है। यदि तीन वसतिकाओं का ग्रहण किया जाता है तो एक में क्षपक, दूसरी में अन्य यति और तीसरी में धर्मोपदेश की क्रिया होती है।

आगम के इसी नियम को ध्यान में रख कर इस क्षेत्र पर समाधिमन्दिर का निर्माण किया गया है। जब क्षपक यमसल्लेखना को ग्रहण करते हैं, तब उनका निवास उस मन्दिर में कराया जाता है।

समाधिमन्दिर में दो कमरे और एक भवन है।

पद्मावती देवी की प्रतिमा

श्री त्रिभुवन चूड़ामणि, चिन्तामणि, कलिकुण्ड पार्श्वनाथ जिनालय में मूल-नायक मूर्ति के बाये हाथ पर पद्मावती की वेदिका है। इसके लिये...

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धरेंद्र देव की प्रतिमा

श्री त्रिभुवन चूड़ामणि, चिन्तामणि, कलिकुण्ड पार्श्वनाथ जिनालय में मूल- नायक मूर्ति के दाये हाथ पर धरणेन्द्र की वेदिका है। इसके...

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गुरु प्रतिमा

मानस्तम्भ से आगे परम पूज्य ज्ञान- मणि, भारत-गौरव, स्याद्वादकेशरी, वात्सल्यरत्नाकर, आर्षपरम्परापोषक, गणाधिपति, गणधराचार्यश्री कुन्थुसागर जी महाराज की खड्गासन प्रतिमा है,...

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मुनिसुव्रतनाथ मंदिर

यह मन्दिर समाधिमन्दिर के समीप है। इस क्षेत्र की संरचना किस प्रकार होनी चाहिये? इस विषय पर जब विचार-विमर्श हुआ,...

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कीर्तिस्तम्भ

प्रवेशद्वार के आगे कीर्तिस्तम्भ की निर्मिति है। इसकी संरचना प्राकृतिक सुषमा के साथ हुयी है।सर्वप्रथम एक खड़ी अप्सरा है। वह...

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क्षेत्रपाल मंदिर

इस क्षेत्र का यह सर्वप्रथम जिनालय है। गर्भगृह और सभागृह के रूप में यह जिनालय दो भागों में विभाजित है।...

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मानस्तम्भ

क्षेत्रपालमन्दिर से बारह फीट के अन्तर पर मानस्तम्भ है। यह मानस्तम्भ मारबल पाषाण से निर्मित है। इसकी अवगाहना इकतालीस फीट...

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समाधिमन्दिर

साधुओं के निवासस्थल को वसतिका कहते हैं। साधना की सिद्धि में वसतिका का भी महत्व आचार्यों ने स्वीकार किया है।जो...

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