कीर्तिस्तम्भ
प्रवेशद्वार के आगे कीर्तिस्तम्भ की निर्मिति है। इसकी संरचना प्राकृतिक सुषमा के साथ हुयी है।
सर्वप्रथम एक खड़ी अप्सरा है। वह कलश को हाथ में लेकर जल डाल रही है। उससे आगे फव्वारा है। फव्वारे का स्तम्भ लगभग इकतीस फीट ऊँचा है। उसके दोनों ओर दो अप्सरायें बैठी हुयी हैं, जो अपने हाथों में स्थित कुम्भ-कलश से जल डाल रही है। इस स्तम्भ का लोकार्पण १२ जून २००३ को हुआ था। सबसे पहले चार कटनियाँ हैं। चौ कटनी के ऊपर सिंहपीठ है। उसके ऊपर कमल है। कमल के ऊपर चौकोर स्तम्भ में चारों ही दिशाओं में खड्गासनावस्था में एक-एक जिन-प्रतिमा है। उसके ऊपर अष्टकोणीय स्तम्भ है। उसमें विविध चित्र अंकित हैं। उसके ऊपर गोलस्तम्भ है। उसमें घण्टियाँ उत्कीर्ण की गयी हैं। उसके ऊपर जैनप्रतिक का अंकन हुआ है।
नीचे कटनी पर एक ओर परम पूज्य गणाधिपति, गणधराचार्यश्री कुन्थुसागर जी महाराज के परिचय को अंकित किया हुआ है। एक और आर्षपरम्परा का उद्घोष लिखा हुआ है और यह स्पष्ट कर दिया गया है कि इस क्षेत्र पर आर्ष-परम्परा के अनुसार ही पूजनपद्धति प्रचलित रहेगी। कटनियों पर मन्त्र और आगमवाक्य उत्कीर्ण किये गये हैं।
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